Bhoot Ki Aapbiti Kahani। भुत की आपबीती कहानी। आईटीआई का भूत
दोस्तों, यह कहानी (Bhoot Ki Aapabiti Kahani) भुत की आपबीती कहानी है। इसलिए आप इसे शुरु से लेकर अंत तक मात्र 5 से 6 मिनट का समय देकर इसे शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ें।
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तो चलिए इस कहानी को शुरु करते है:-
घटना 1960 के ज़माने की है. अलीगढ आईटीआई में मेरे पिता प्रिंसिपल थे. हमलोग कैम्पस के ही क्वार्टर में रहते थे. गर्मियों के दिन थे. हमलोग बाहर बरामदे में सोये हुए थे.
रात के करीब एक बजे सुपरवाईजर आरके सिंह जो सिक्युरिटी का काम भी देखते थे मुझे जगाया और कहा कि अपने पिताजी को बुलाओ. पिताजी अन्दर आँगन में सोये थे. मैंने उन्हें जगाया तो वे बाहर आये तो सिंह साहब ने बताया कि मशीन चल रही है. उसकी आवाज़ यहाँ तक आ रही है.
पिताजी ने कहा कि दो-तीन लोगों को साथ लेकर जाइये और देखिये कि वहां कोई है क्या. वे लोग गए और कुछ लोगों को साथ लेकर गए. काफी देर बाद लौटे और बताया कि वहां कोई नहीं था. मशीन अपने आप चल रही थी. उसे बंद कर दिया गया.
इतना कहकर वे लोग अपने-अपने घर चले गए. अभी वे लोग घर पहुंचे भी नहीं होंगे कि मशीन चलने की आवाज़ फिर आने लगी. पिताजी को आकर उन्होंने बताया और फिर देखने चले गए. मशीन बंद कर उन्होंने मेन स्विच ऑफ कर दिया. वर्कशॉप बंद करके पिताजी को बताकर घर चले गए. सुबह के तीन बज चुके थे.
उस दिन मशीन फिर नहीं चली. मुझे लगा कि यह एक संयोग हो सकता है. दूसरी रात फिर मशीन चलने लगी. चार स्टाफ को लेकर सुपरवाइजर साहब पिताजी के पास आये. उन्होंने कहा कि चौकीदार ने बताया कि एक घंटे से मशीन चल रही है. पिताजी ने जाकर देखने को कहा और मेन स्वीच बंद कर देने को कहा.
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वे लोग वर्कशॉप गए और मेन स्विच बंद कर दिया. कोई आदमी वहां नज़र नहीं आया. पिताजी को जानकारी देकर वे सोने चले गए. उस वक़्त रात के दो बज चुके थे. आधे घंटे बाद फिर मशीनें चलने लगीं. फिर वे लोग आये और पिताजी को बताकर वर्कशॉप की और चल दिए. मशीन बंद कर उन्होंने में स्विच का ग्रिप भी निकाल दिया.
कोई दिखाई नहीं पड़ा. वे सूचना देकर फिर अपने-अपने घर चले गए. उस रात फिर मशीनें नहीं चलीं. दूसरे दिन सुबह सिंह साहब फोरमैन के साथ आये. उन्होंने कहा कि सर कल सोमवार को प्रैक्टिकल का एक्जाम है. हो सकता है किसी छात्र का प्रैक्टिकल पूरा नहीं हुआ हो और वह रात में प्रैक्टिस करता हो. सुपरवाइजर साहब ने कहा कि यदि ऐसा है तो वह दिखाई क्यों नहीं देता.
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हमारे पहुँचते ही गायब कहां हो जाता है. चलिए दिन में देखा जाये. वर्कशॉप खोलकर देखा गया लेकिन कोई नज़र नहीं आया. वर्कशॉप बंद कर वे चले गए. इतवार की रात फिर मशीनें चलने लगीं. सारे लोग परेशान हो गए कि यह कैसे हो रहा है. सोमवार को परीक्षा शुरू होने के वक़्त जब एक्जामिनर आये और जॉब देकर आठ घंटे में उसे पूरा करने को कहा. फिर अपनी जगह आकर बैठ गए.
तभी उनकी नज़र टेबुल पर पड़ी. उन्होंने देखा कि वह जॉब बनाकर पहले से रखा हुआ है. उसपर रोल नंबर भी पंच किया हुआ था. इंस्ट्रक्टर को बुलाकर पूछा तो पता चला कि वह रोल नुम्बर जिस लड़के का है उसकी मौत तीन माह पहले मोटरसाईकिल एक्सीडेंट में हो चुकी है.
यह बात पिताजी के पास पहुंची तो उन्होंने कहा कि उसपर नंबर दे दीजिये. लगता है कि उसकी आत्मा भटक रही है. नंबर देकर उसे पास कर देने से उसकी आत्मा को शांति मिलेगी. एक्जामिनर ने नंबर दे दिया. और सचमुच उस दिन के बाद कभी भी रात के वक़्त अपने आप मशीनें नहीं चलीं. हम तीन वर्ष तक वहां रहे लेकिन ऐसी कोई घटना नहीं हुई.
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